शिव तांडव स्त्रोत के लाभ
देवो के देव महादेव को कहा जाता हैं और
महादेव का सबसे बड़ा भक्त रावण था। जिसने अपनी कड़ी तपस्या से महादेव को प्रसन्न
किया था, ऐसे में भगवान शिव के परम भक्त लंकाधिपति रावण ने एक स्रोत की
रचना की जिसे शिव तांडव स्तोत्र कहा जाता है। आपको बता दें की रावण ने भगवान शिव
को प्रसन्न करने के लिए इस स्रोत के श्लोक का 1000
वर्षो तक पाठ किया था और तब जाकर भगवान
शिव रावण से प्रसन्न हुये थे और रावण को उसके सारे कष्टो से मुक्ति दे दी और रावण
के द्वारा जाप किए हुये इसी श्लोक को शिव तांडव स्तोत्र कहते हैं।
शिव
तांडव स्तोत्र
जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव
लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम् ॥१॥
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम् ॥१॥
जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥
धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा
कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥
सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा
निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥
करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥
नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर
त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह
माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध
गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र
जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब
मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनांं सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनांं सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः
शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥
॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डवस्तोत्रं
सम्पूर्णम् ॥
ऐसी मान्यता हैं कि एक बार रावण अपने बल
का प्रदर्शन करने के लिए पूरे कैलाश पर्वत को उठा लिया था और पूरे कैलाश पर्वत को
वह लंका ले जाना चाहता था लेकिन भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे मात्र से ही दबा
कर कैलाश को स्थिर कर दिया था और इसी पर्वत के नीचे रावण का हाथ दाब गया और वह
दर्द से चीख उठा- शंकर-शंकर अर्थात क्षमा करिए-क्षमा करिए और भगवान शिव की स्तुति
करने लगा। इसी स्तुति को ही शिव तांडव स्तोत्र कहा जाने लगा| ऐसा कहा जाता हैं कि
इस स्रोत से प्रसन्न होकर शिव जी ने लंकाधिपति को रावण नाम दिया था| रावण के बारे में
बहुत सारी कथाएँ शास्त्रो में प्रचलित हैं।
ऐसा कहा जाता हैं कि इस पृथ्वी का सबसे
बड़ा ज्ञानी रावण ही था लेकिन अपने अहंकार के चलते ही वो आपकी ज्ञानता को अज्ञानता
में परिवर्तित कर देता था। इसके अलावा यह भी कहा जाता हैं कि जब राम ने रावण को
युद्ध में पराजित करके उसे मार डाला और वह जब मृत्यु शैया पर लेता था तब राम ने
अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उसके पास शिक्षा लेने के लिए भेजा और कहा कि इस पृथ्वी
का सबसे बड़ा विद्वान इस दुनिया से जा रहा हैं,
अर्थात रावण के पतन और उसके मृत्यु का
कारण सिर्फ उसका अपना अहंकार ही था वरना यदि रावण अहंकारी नहीं होता तो वो शायद
कभी नहीं मरता।
शिव
तांडव स्तोत्र के लाभ
- शास्त्रो के मुताबिक शिव तांडव स्तोत्र पढ़ने और सुनने
मात्र से ही इंसान के सारे पाप धूल जाते हाँ और उसकी हर मनोकामना पूरी होती
हैं| बता दें कि शिव तांडव स्तोत्र में इतनी शक्ति हैं कि आपकी
हर बड़ी परेशानी को दूर कर सकती हैं।
- शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र बहुत
खास स्तुति हैं, यह स्रोत भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त रावण ने रचा हैं और
यह स्तुति पंचचामर छंद में है।
शिव
तांडव स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करें
- प्रातः काल या प्रदोष काल में इसका पाठ करना सर्वोत्तम
माना जाता हैं।
- पहले भगवान शिव को प्रणाम कर उन्हें धूप, दीप
और नैवेद्य अर्पित करें।
- इसके बाद शिव तांडव स्तोत्र का पाठ गाकर करे।
- यदि आप इसका पाठ नृत्य के साथ करें तो यह सर्वोत्तम होगा।
- पाठ के बाद भगवान शिव का ध्यान करें और अपनी प्रार्थना
करें और ऐसा करने से आपकी सारी मनोकामना पूरी हो जाएगी।
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